क्षत्रिय राजपूत जाति के सरदार जो की
अहिलवाड़ा राज्य के वीर योद्धा और प्रतापी राजपूत जिनमे से 189 राजपूत सरदारो के परिवारो ने अपनी मातृभूमि अहिलापुर राज्य व अपनी जागीरों को
छोड़ तत्कालीन राजपूताना (वर्तमान में राजस्थान) में बस गये क्योंकि राजपूत सरदारो
के आपसी मनमुटाव व सामंत बनने की लड़ाइयो के कारण तथा अपने दिए हुए वचन पर
राजा जयसिंह द्वारा मुखर जाने पर 189 परिवारो के 11 गोत्रि क्षत्रिय राजपूत राजस्थान आ गये व वर्तमान में राजस्थान में इनको
क्षत्रिय व क्षत्रिय(घाँची) जाति के नाम से पहचाने जाने लगे जो कि शुद्ध क्षत्रिय
राजपूत सरदार है
राजपुताना में इन सरदारो ने विक्रम सवंत 1191 में प्रस्थान किया
तथा उस समय की राजपूत ठिकाणे में रहने लगे जिसमे सिरोही सुमेरपुर पाली से
होते हुए जोधपुर , भीनमाल व बालोतरा आदि ठिकाणो में रहकर उस
समय के राजाओ की सेनाओ में सेवा देकर अपना क्षत्रिय राजपूती धर्म निभाते और कर्षि
के व्यवसाय को जातिय व्यवसाय अपना कर कर्षि कार्य करने लगे
राजपुताना(राजस्थान) में आने से पहले इन सरदारो का शासन अहिलापुर
/अहिलवाड़ा राज्य में शासन था तथा इनकी राजधानी पाटण थी
👉अपनी ही जाति के राजा
जयसिंह सोलंकी ने सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार 1189 में करवाया था
👉 क्षत्रिय सरदार
(घाँची) जाति के राजा जयसिंह सोलंकी बड़ा ही प्रतापी राजा होने के कारण इनको
सिद्धराज की उपाधि मिली और इन्होंने अपने शासन काल में कही युद्ध जीतकर अपने राज्य
की सीमाएं बढाकर मेवाड़ तक व उत्तर दिशा में जैसलमेर तक राज्य विस्तार किया
क्षत्रिय(घाँची) समाज के इतिहास के अनुसार कुल 12 राजपूती गोत्रे है और इन क्षत्रिय गोत्रो की उत्पति कैसे हुए है
तो इन गोत्रो की उत्पत्ति का इतिहास वेदों पुराणों व शास्त्रों में लिखा हुआ
है इन गोत्रो को इनके वंस के आधार पर तीन भागो में बॉटा गया है
जिनमे सूर्यवंश , चन्द्रवंश,अग्निवंश ,ऋषिवंश है और इन वंस के आधार पर गोत्रे विभाजित है
सूर्यवंशी = रणबंका राठौड़ , गेहलोत, पँवार , निकुंभ/ निकुंब
चंद्रवंशी = भाटी
अग्निवंश की चार शाखायें:-
१.चौहान( देवड़ा गोत्र चौहानो की ही खाप है ) २सोलंकी ३परिहार ४.परमार.
ऋषिवंश की शाखायें
दहिया(दधीचि ऋषि के वंशज)
"बोराणा (तंवर)गोत्र की उतपत्ति" बोराणा गोत्र सुध रूप से तंवर वंस की गोत्र है, तंवर तोमर जो कि पाण्डु पुत्र अर्जुन के वंशज है। क्षत्रिय वंस की शाखा है, राजा अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना जिनका मालवा , मारवाड़ ओर देसूरी पर सासन था। अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना के नाम से ओर उनके वंस से बोराणा गोत्र की उतपति हुई और धीरे धीरे बोराणा गोत्र के रूप में प्रचलित हो गई । इस तरह ये तंवर राजपुतो की एक शाखा बोराणा बनी । तंवर वंस बोराणा वंस एक ही है।
आदि अलग अलग वंशजो की 11 गोत्रे हमारे क्षत्रिय
(घाँची) समाज में है
mera name nhi aaya h list me
ReplyDeleteJaisinghpuriya goutra bhi ghanchi hai na?
ReplyDeleteDesuri ke Raja Borana the nama mata kuldevi hai aj bhi rajsamand me Borana rajput lgate hai
ReplyDeleteतोमर जो कि पाण्डु पुत्र अर्जुन के वंशज है। क्षत्रिय वंस की शाखा है, राजा अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना जिनका मालवा , मारवाड़ ओर देसूरी पर सासन था। अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना के नाम से ओर उनके वंस से बोराणा गोत्र की उतपति हुई और धीरे धीरे बोराणा गोत्र के रूप परचलित हो गई । इस तरह ये तंवर राजपुतो की एक शाखा बोराणा बनी । तंवर वंस बोराणा वंस एक ही है। ये सब हमारे राव भाटो की बहियों में लिखा है।
ReplyDeleteहर हर महादेव🙏🙏
जय भवानी🚩🚩
बोराणा गोत्र सुध रूप से तंवर वंस की गोत्र है, तंवर तोमर जो कि पाण्डु पुत्र अर्जुन के वंशज है। क्षत्रिय वंस की शाखा है, राजा अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना जिनका मालवा , मारवाड़ ओर देसूरी पर सासन था। अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना के नाम से ओर उनके वंस से बोराणा गोत्र की उतपति हुई और धीरे धीरे बोराणा गोत्र के रूप परचलित हो गई । इस तरह ये तंवर राजपुतो की एक शाखा बोराणा बनी । तंवर वंस बोराणा वंस एक ही है। ये सब हमारे राव भाटो की बहियों में लिखा है।
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